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संभलना चाहतीं हूं, साथ चाहिए.. निखरना चाहती हूं,थो

संभलना चाहतीं हूं, साथ चाहिए..
निखरना चाहती हूं,थोड़ा समय चाहिए..
उड़ने के लिए, पर नहीं है पास मेरे..
कुछ करना चाहती हूं , अपनों का विश्वास चाहिए..
मुझे.. रिश्तों की डोर में ना उलझाओ अभी ...
उलझी इन राहों में और मुश्किल बढ़ाओ ना अभी..
कुछ बाकी है अभी ,सपने मेरे ..
उन्हें मुकम्मल ना कर पाऊं ,ऐसे हालात बनाओ ना अभी.... nojoto@my incomplete dream... Rohit Bhargava
संभलना चाहतीं हूं, साथ चाहिए..
निखरना चाहती हूं,थोड़ा समय चाहिए..
उड़ने के लिए, पर नहीं है पास मेरे..
कुछ करना चाहती हूं , अपनों का विश्वास चाहिए..
मुझे.. रिश्तों की डोर में ना उलझाओ अभी ...
उलझी इन राहों में और मुश्किल बढ़ाओ ना अभी..
कुछ बाकी है अभी ,सपने मेरे ..
उन्हें मुकम्मल ना कर पाऊं ,ऐसे हालात बनाओ ना अभी.... nojoto@my incomplete dream... Rohit Bhargava

nojoto@my incomplete dream... Rohit Bhargava #poem