आखों में कुछ सपने लेकर, साथ में कुछ अपने लेकर, चली थी मैं एक मोड़ पर, सोचा था बनाऊगी मैं अपना कल, पर ना जाने क्या ये हो गया हैं, सब कुछ जैसे रुक सा गया हैं, अब अपने तो हैं साथ मेरे, पर सपनों का गला घुट सा गया हैं।। - Ishika Bajaj lost