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थार घास से महरूम जरूर है किन्तु कविताओं से नहीं इस

थार घास से महरूम जरूर है
किन्तु कविताओं से नहीं
इसीलिए आज भी थार में
अपनेपन की खुशबू है
जो चहुँओर बिखर रही है

आकाश चारण "अर्श" मुझे इसका क़तई इल्म नहीं
कि कविता कैसे लिखी जाती है
आखिर कैसे कोरे कागज पर
कुछ लकीरें उकेरी जाती है
मुझे इसका क़तई इल्म नहीं है
लेकिन फिर भी मैं लिखता हूँ
या लिखने की कोशिश करता हूँ
क्योंकि मैं जान चुका हूँ
थार घास से महरूम जरूर है
किन्तु कविताओं से नहीं
इसीलिए आज भी थार में
अपनेपन की खुशबू है
जो चहुँओर बिखर रही है

आकाश चारण "अर्श" मुझे इसका क़तई इल्म नहीं
कि कविता कैसे लिखी जाती है
आखिर कैसे कोरे कागज पर
कुछ लकीरें उकेरी जाती है
मुझे इसका क़तई इल्म नहीं है
लेकिन फिर भी मैं लिखता हूँ
या लिखने की कोशिश करता हूँ
क्योंकि मैं जान चुका हूँ

मुझे इसका क़तई इल्म नहीं कि कविता कैसे लिखी जाती है आखिर कैसे कोरे कागज पर कुछ लकीरें उकेरी जाती है मुझे इसका क़तई इल्म नहीं है लेकिन फिर भी मैं लिखता हूँ या लिखने की कोशिश करता हूँ क्योंकि मैं जान चुका हूँ