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दोस्तों से तआ'रूफ़ नहीं कराते अज़ीज़ों से वो क्यों मि

दोस्तों से तआ'रूफ़ नहीं कराते
अज़ीज़ों से वो क्यों मिलवाएंगे
कहते हैं इश्क़ बे-इंतेहा है करते  
फिर हमसे राज़ वो क्यों छु-पाएंगे
बातों से उनकी लगता नहीं मगर
दिल की बात वो क्यों बताएंगे
दर्द-ए-ग़म की वज़ह है मानते हमे 
भला ज़ख़्म-ए-ग़म वो क्यों दिखाएंगे 
वज़ह होगी शायद रोकने की वरना 
देहलीज़ से हमे वो क्यों लौटाएंगे
दिल का घर हो जब वीरान पड़ा 
फिर मिट्टी का घर वो क्यों सजाएंगे 
बातें मोहब्बत की हुई थी दरमियाँ 
नफ़रत के किस्से वो क्यों सुनाएंगे 
गुस्ताखियाँ हमने भी की थी मग़र 
खुदकी नादानियाँ वो क्यों गिनवाएंगे 
मुनासीब है दूरी इख़्तियार करना 
है राहे जुदा साथ वो क्यों निभाएंगे 
ज़रूरी हैं साबिर इश्क़ में भी लुटना
के हर चीज़ ज़माने में क्यों लुटाएंगे
     Mujhe pasand hai
दोस्तों से तआ'रूफ़ नहीं कराते
अज़ीज़ों से वो क्यों मिलवाएंगे
कहते हैं इश्क़ बे-इंतेहा है करते  
फिर हमसे राज़ वो क्यों छु-पाएंगे
बातों से उनकी लगता नहीं मगर
दिल की बात वो क्यों बताएंगे
दर्द-ए-ग़म की वज़ह है मानते हमे 
भला ज़ख़्म-ए-ग़म वो क्यों दिखाएंगे 
वज़ह होगी शायद रोकने की वरना 
देहलीज़ से हमे वो क्यों लौटाएंगे
दिल का घर हो जब वीरान पड़ा 
फिर मिट्टी का घर वो क्यों सजाएंगे 
बातें मोहब्बत की हुई थी दरमियाँ 
नफ़रत के किस्से वो क्यों सुनाएंगे 
गुस्ताखियाँ हमने भी की थी मग़र 
खुदकी नादानियाँ वो क्यों गिनवाएंगे 
मुनासीब है दूरी इख़्तियार करना 
है राहे जुदा साथ वो क्यों निभाएंगे 
ज़रूरी हैं साबिर इश्क़ में भी लुटना
के हर चीज़ ज़माने में क्यों लुटाएंगे
     Mujhe pasand hai