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यूँ रात के कालेपन में मैं सपनो को गढती थी मैं वही

यूँ रात के कालेपन में मैं सपनो को गढती थी
मैं वही पुरानी आग  पानी से जलती थी 
नही समझ आता मुझको 
कैसे कुचला जाता है खुद को 
यूँ मंद्रिर के बिराने में आहट को पहचाना करती थी
मैं वही पुरानी घंटी मन्नत से बजती थी
 #NojotoQuote
यूँ रात के कालेपन में मैं सपनो को गढती थी
मैं वही पुरानी आग  पानी से जलती थी 
नही समझ आता मुझको 
कैसे कुचला जाता है खुद को 
यूँ मंद्रिर के बिराने में आहट को पहचाना करती थी
मैं वही पुरानी घंटी मन्नत से बजती थी
 #NojotoQuote