जीत कर अहम को खुदके, मैं ख़ुद को हार आया हूँ !! उम्र भर साथ जीने के वादे को पल में मार आया हूँ !! जीते जी जिस ने कभी हाथ बढाकर हाल ना पूछा ; आज आंखों में उनके आँसू और कंधे चार लाया हूँ !! दिखता नही हूँ अब तो सिर्फ महसूस कर मेरी खुश्बू ; आता नही जहां से कोई , वहां से मैं इसबार आया हूँ !! मिलती थी जो खुशियां मुझसे हक़ से लड़ भी लेने पर; थोडी वही तकरार और वही जरा सा प्यार लाया हूँ !! तेरी उन ख्वाहिशो के पुरचे , सहेजे आंख में अपने ; बदले में मेरी खुशी के मैं तेरा सोलह श्रृंगार लाया हूँ !! साथ बैठे थे क्षितिज के दो किनारे, है वो दायरे में अब; सभी डूबे है जिस दरियां में , मैं वो करके पार आया हूँ!! जीत कर अहम को खुदके... ©Jajbaat-e-Khwahish(जज्बात) कंधे चार लाया हूँ.... #dedicated #missing_u #thank