ना पूछो वफाओ,का कैसा सिला है। खुसी इसमें कम,बस गम ही मिला है। तबस्सुम तसब्बुर,तबायफ है लगती। बदनाम चर्चो की,कबायत है लगती। ये यादों का बस,एक सिलसिला है। खुसी इसमें कम,बस गम ही मिला है। तवज्जो तकल्लुफ,ये तबियत की बाते। गुजरी है सबकी,फिर फजीहत की राते। ना निकल पाए जिससे,ऐसा किला है। खुसी इसमें कम,बस गम ही मिला है। ज़हर है कहर,जिसमे जलता शहर है। वही बनता दुश्मन,जो हुआ हमसफर है। आनन्द ये एक दूसरे,से कराता गिला है। खुसी इसमें कम,बस गम ही मिला है। ©Anand singh बबुआन ना पुछो #alone