चोट जिस्म की तो अक्सर भर जाती है, पर चोट दिल की नासूर बन जाती है। कोई हालत देखकर हस्ता है, तो कोई उपहास के व्यंग कसता है। यूं तो समझौते खूब किए हैं जिंदगी से। कभी गम में भी हसे है, कभी खुशियों में भी खोए रहते हैं। बड़ी खुशियों की तो कभी आस तक नहीं की, और खुशियां भी हामारी रास्ता भटक गई हैं। शायद कोई नाराजगी है जिंदगी की मुझसे , होठों तक अाई हसी को भी लौटा देती है। सिसक –सिसक कर आंसू गिरते थे, पर कोई न हालत देखता था। पानी से आंसू खून बन गए, और दिलवाला यह देखकर हस्ता था। जो लाया था बनाकर जिंदगानी मुझको, उसी ने नज़रों पर गिराया था । कद्र न जानी उसने मेरी, गैरों की उसने मुझे बताया था । घुट–घुट कर मैने आंसू पिए है, और शब्दो के तीर खाए हैं। एक होती अकेली जान तो मेरी, मरना भी मुझको गवारा था। अब माली भी थी मै बगिया की अपनी, जिसमे सुंदर फूल खिले थे। बस जी रही हूं देखकर उनको, फिर भी जब मालिक से सितम मिले थे। मै सहारा थी उनकी जिंदगी का, और यह जान ही जीने का मकसद थे। सहन तो कर ली चोट चरित्र की, यह सोच की दर्द मिला भी तो अपनों से। हारी नहीं हूं खुद से कभी मै, ना जिंदगी कभी हार पाई है। अब तो गम में भी खुशियां ढूंढ लेती हूं, मेरी खुशियां ही मेरे बच्चो में समाई हैं। @ ✍️Dheeraj कोहली ©Er. Dhiru Kohli # दर्द #min@kshi goy@l:-) #nanhi_shayrana #Isha Rajput #vks Siyag #राधा.....राजपूत...💞