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कुछ बस्तियां हैं बस रही इन बागों को उजाड़ कर, गलीचे

कुछ बस्तियां हैं बस रही इन बागों को उजाड़ कर, गलीचे दरियां बन रही हैं धागों को उघाड़ कर।।
बस्तियां तो बस रही पर हस्तियां मिटती जा रही, इंसान के हंसने में भी सिसकीयां निकलती जा रही। 
हाथ थाम एक दूसरे का जो थे साथ चल रहे, वो टांग अड़ा और सिर कुचल कर आगे बढ़ रहे, हर कोई जीतना चाहता है दूसरे को पछाड़ कर।। #jindgi#future#insaan
कुछ बस्तियां हैं बस रही इन बागों को उजाड़ कर, गलीचे दरियां बन रही हैं धागों को उघाड़ कर।।
बस्तियां तो बस रही पर हस्तियां मिटती जा रही, इंसान के हंसने में भी सिसकीयां निकलती जा रही। 
हाथ थाम एक दूसरे का जो थे साथ चल रहे, वो टांग अड़ा और सिर कुचल कर आगे बढ़ रहे, हर कोई जीतना चाहता है दूसरे को पछाड़ कर।। #jindgi#future#insaan