तन से चंचल,मन के सच्चे थे हम, वो भी क्या दिन थे जब बच्चे थे हम, ना कल की फिक्र थी न किसी को खोने का डर, बस सुकून ही सुकून था चारो तरफ, अब जिम्मेदारियों के बोझ में दब गए हम, अक्सर सोचता हूँ कि बड़े क्यो हो गए हम, बचपन की वो रईसी न जाने कहाँ खो गयी, वो बरसात वाली नाव ना जाने किस नाले में खो गई, वो गैस वाला गुब्बारा जिसे मंदिर से लौटते वक्त लाते थे, और जिसके फूट जाने पर हम सबसे रूठ जाते थे, वो अम्मा की बेरी ना जाने किस गली की शोभा होगी, जिसे खाने के लिए हम रोज नए नए बहाने बनाते थे, वो मोहल्ले वाला क्रिकेट अब कहाँ खेल पाते है हम, अब कहाँ वो नेमा जी की पाइप, वो शर्मा जी की CFL तोड़ पाते है हम, वो लुक्का-छुपी का खेल भी तो कितना प्यारा लगता था, जिसमें छुपने में मजा और ढूढ़ने में दूसरो का सहारा लगता था, ऐसे तो सैकड़ो किस्से है कहाँ तक सुनाऊंगा, मैं कितनी भी कोशिश करूँ बच्चा नही बन पाऊंगा, वो उम्र, वो लहजा, वो आलम ही कुछ और था, जिंदगी खुलकर जीने का वो इकलौता दौर था, उम्मीद है इसे पढ़कर आपको भी कुछ याद आया होगा, शायद आपने भी अपने बचपन का एक अंश इन पंक्तियों में पाया होगा। #ChildrensDay2019 #children #trends #HappyChildrensDay #Nojoto #NojotoHindi