चाय और चौपाल पता नहीं कहां खो गयी अब बुजुर्गों की टोली जो , चौपाल पर बैठ कर गाँव की रौनक हुआ करती थी,, अब तो केवल गाँव और चौराहों पर दलालों और , प्रधानों की चाय की चौपाल लगती है......