बचपन में जितनी बेसब्री से चाहत रही बड़े होने की उतनी शिद्दत से तलब लगती है फिर बचपन में जाने की मुश्किलों से दो दो हाथ करती हुई हौसलों की किश्ती कभी भंवर में उलझती कभी किनारे पर अटकती है जल्दबाजी में खो कर बचपना हुआ नहीं कुछ हासिल जिम्मेदारी की धूप ही झुलसाने ही लगती है आखिर बबली गुर्जर ©Babli Gurjar धूप