लाचारी यहां सारे आम चीखती है खामोश ज़माना होता है जो मेरे झरोखों से दिखती है रोटी के लिए आखे तराशती है पेट के भुख के लिए जिस्म बिकती है जो मेरे झरोखों से दिखती है सपने फूटपाथ पर करवटें बदलती है शिसो के घरों में इन्सानियत दम तोड़ती है जो मेरे झरोखों से दिखती है सत्य यहां खामोश रहती है जूल्म सीना तान रहा पर चलती है जो मेरे झरोखों से दिखती है आसमान में चांद सूरज के निगाहें झुकती है इन्सान का रुप बदला देख जानवर भी सोचती है जो मेरे झरोखे से दिखती है ©Tafizul Sambalpuri मेरे झरोखों से दिखती है #brokenwindow