अब समझ में नही आता कि इन्सान को इन्सान कैसे कहूँ? जो स्नान करे मिश्री-मेवे से और भूखे को बासी रोटी भी नसीब ना हो.. तो उसे भगवान कैसे कहूँ? और इन्सान को इन्सान कैसे कहूँ? जो आदमी घर के बरतन बेच जुआ खेल जाए और बच्चे बिन खाये खाली पेट सो जाए तो कैसे उस माँ की आँखें लहुलुहान ना कहूँ ? और इन्सान को इन्सान कैसे कहूँ? हर तरफ इज्जत-आबरू की लूट हुई पडी है... तो कैसे सबको हैवान ना कहूँ? और इन्सान को इन्सान कैसे कहूँ? हर चौराहे पर दंगे-फसाद हो रहें हैं तो कैसे उन्हें जातिवाद की कटार चलाने वाले शैतान ना कहूँ? और इन्सान को इन्सान कैसे कहूँ? हर ओर तो आरक्षण की लूट मची पडी है तो कैसे देश का भविष्य हैरान-परेशान ना कहूँ? और इन्सान को इन्सान कैसे कहूँ? गर नही थमा ये मंजर और चलती रही ये दरिंदगी तो कैसे इस लोक को शमशान ना कहूँ? और मुर्दे ही तो बसते हैं शमशानों में तो इन्सान को इन्सान कैसे कहूँ? ~आशी #nojoto #nojotowritings #nojotohindi #kavishala #nojotopoetry