हम ही ने अपने दिल से आज लो, फिर से बगावत की । हुआ मालूम जब तेरी अदा भी एक बनावट थी । निगाहों से नई शबनम की बूंदे भी उतर आईं । हमारी आरज़ू टूटी, तेरी महफ़िल सलामत थी ।।