रस्ता और गाँव वो कच्चे-पक्के रास्ते और उन पर बनी बस्तियां वो शाम को पशुओं का आना और गले में बजती घण्टियां वो याद है मुझको... वो गर्मी का मौसम आना और लोगों का पेड़ों की छांव में जमा होना फिर किस्से-कहानी सुनाना वो याद है मुझको... वो सुबह से ही घर से निकल जाना पूरे दिन खेलना-खिलाना फिर शाम को वापस आना और माँ के हाथों से पिटाई खाना वो याद है मुझको... ✍️ सुशील कुमार #gaon-gali #bachpankiyaadein