दोस्तों संग, क्या खूब महफिल जमी थी, पर तुम्हारी गैर मौजूदगी, एक खलती कमी थी। हँसी के ठहाके थे, मस्ती बेशुमार थी, मेरी ही रूह कुछ उदास, कुछ बिमार थी। दोस्तों में घुल मिलने की, कोशिश पुरज़ोर थी, पर अपनी तरफ खींचती, ज़ोरदार, तुम्हारी यादों की डोर थी। बैठे रहे अपनी उदासी संग, हमारी मुस्कुराहट सब सम्भाले थी, बिमार है हम, यही बहाना, दोस्तों की ज़ोर जबरदसती टाले थी। दोस्तों संग, क्या खूब महफिल जमी थी, पर तुम्हारी गैर मौजूदगी, एक खलती कमी थी। #महफिल#तुम्हारीकमी