दो शूल चुभा अनगिन तन में, दो डाल मुझे कंटक वन में | दो मुझे चीखने पीड़ा से, बहने दो रुधिर मेरा कण-कण | हाँ जाओ चले खुशियों के क्षण || ©® कवि शिवम् सिंह सिसौदिया अश्रु 💧 हाँ जाओ चले खुशियों के क्षण