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मिरी नज़र से न हो दूर एक पल के लिए तिरा वजूद है ल

मिरी नज़र से न हो दूर एक पल के लिए 
तिरा वजूद है लाज़िम मिरी ग़ज़ल के लिए 

कहाँ से ढूँढ के लाऊँ चराग़ सा वो बदन 
तरस गई हैं निगाहें कँवल कँवल के लिए 

किसी किसी के नसीबों में इश्क़ लिक्खा है 
हर इक दिमाग़ भला कब है इस ख़लल के लिए..

©Imran Farooqui
  #You&Me #poetry #shayari

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