#गुरु (संस्मरण) रचना: #अर्श#Arsh
आज का दिन था अपने गुरु डॉ बी एन दूबे "व्यथित" से मिलने का। मिलने जाते वक़्त मन मे अजीब सी कंपन थी .. ठीक वैसी ही जैसी, वृद्धाश्रम में रह रहे बूढ़े पिता को देखने जाते वक्त एक पुत्र के मन मे होती होगी, जिसने कई सालों तक पिता की सुध तक न ली हो, और अब सशंकित हो रहा हो कि क्या पता अबतक वो जीवित भी होंगे अथवा नहीं,
ठीक वैसी ही मुझे भी महसूर हो रही थी
दरवाजे पर हीं उनके पुराने नौकर ने बताया कि बीते तीन सालों से गुरुजी अल्जाइमर से पीड़ित हैं अल्ज़ाइमर :- यह वहीं बीमारी है जिसमें इंसान मिनट भर पहले की बातें भी भूल जाता है,
गुरु के गिरते स्वास्थ्य को जानकर दर्द तो हुआ पर मन मे एक संतोष भी था कि चलो, कम से कम वो जीवित तो हैं,
पर यह संतोष तब खीज में बदल गया जब गुरु ने अपने सबसे प्रिय शिष्य को भी6 नहीं पहचाना... उनकी बेचैन सी निगाहें अतीत में मेरे चेहरे को ढूंढने की असफल कोशिश कर रहीं थीं।