हकीमों ने बाज़ार लगा के रख्खा है, दूर से कोई मंडी सी नज़र आती है, हकीमों ने दवा के पैमानें बना के रख्खे है, इक शीशी में कहीं दवा का सरोवर होगा जहाँ से ले आते है कम्बख़्त पैमानें में एक आद बूँद झिटक के बस हो गया इलाज़ मेरे मालिक हक़ीम को इन्सानियत ,मुझे ठण्डी रोशनी बख़्श ! ................................................. ©️✍️ सतिन्दर पापा 2