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जिस दर पर रहते थे अपने वो ना जाने कब पराए हो गए औ

जिस दर पर रहते थे अपने वो ना  जाने कब पराए हो गए और जहां मिले थे कुछ अनजाने वो ना जाने कब हमें अपना मानने लगे यह एहसास तो मुझे उनकी फिक्र से हुआ यह मेरी गुस्ताखी थी जो मैंने खुद को उस एहसास से दूर रखा Tera Apna pan
जिस दर पर रहते थे अपने वो ना  जाने कब पराए हो गए और जहां मिले थे कुछ अनजाने वो ना जाने कब हमें अपना मानने लगे यह एहसास तो मुझे उनकी फिक्र से हुआ यह मेरी गुस्ताखी थी जो मैंने खुद को उस एहसास से दूर रखा Tera Apna pan

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