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मैं नहीं हूँ इस लायक कि बैठ सकूँ बगल में कॉलेज की

मैं नहीं हूँ इस लायक कि बैठ सकूँ बगल में
कॉलेज की कैंटीन में या क्लास के अंदर,
या किसी बगीचे में या अग्नि के समक्ष।
मैं नहीं हूँ प्रेमिका या पत्नी कहलाने लायक।
क्यूँकि अधूरी स्त्री हूँ मैं।
मैं अपने प्रेमी को सुख नहीं दे सकती बिस्तर का
या पति को उसके वंश को बढ़ाने वाला माँस।
कमज़ोर है गर्भ मेरा जिस में मरती हैं हर रोज
उम्मीद, ज़रूरत और लालसा,
एक साथी की।
-मदालिषा तोमर 'सहबा' #sahba #aurat #denial #life #hindi #poetry
मैं नहीं हूँ इस लायक कि बैठ सकूँ बगल में
कॉलेज की कैंटीन में या क्लास के अंदर,
या किसी बगीचे में या अग्नि के समक्ष।
मैं नहीं हूँ प्रेमिका या पत्नी कहलाने लायक।
क्यूँकि अधूरी स्त्री हूँ मैं।
मैं अपने प्रेमी को सुख नहीं दे सकती बिस्तर का
या पति को उसके वंश को बढ़ाने वाला माँस।
कमज़ोर है गर्भ मेरा जिस में मरती हैं हर रोज
उम्मीद, ज़रूरत और लालसा,
एक साथी की।
-मदालिषा तोमर 'सहबा' #sahba #aurat #denial #life #hindi #poetry