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कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह प

कवन सो काज कठिन जग माहीं। 
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा। 
सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥3॥

भावार्थ

जगत में कौन सा ऐसा कठिन काम है 
जो हे तात! तुमसे न हो सके। 
श्री राम जी के कार्य के लिए ही तो 
तुम्हारा अवतार हुआ है। 
यह सुनते ही हनुमान जी
 पर्वत के आकार के
 (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥3॥











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©Asheesh Mishra
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