तू जो हमेशा मुझे बोला करती है छोरदो ये बात तूमहे आज समझ नही आएगी जब आएगी तो आँख मे आँसू भी नही आ पायेगी क्यों कि ये बात बो टूटी पतंग के जैसा है डोर तो हाथों मे होती है पर कटने के बाद हमारी नही रहती क्यों कि हमारि नजरो के सामने ही उस टूटी पतंग को कोई औऱ उरा रहा होता है तुम मुझे क्या छोरने की बात कहती है बक्त मुझे खुद एक दिन छोरदेगा रंजीत बक्त खुद एक दिन मुझे छोरदेगा