कितनी रौशनी है तेरी आँखों मे आँसूओ से यूं बुझाया न कर जाकर लिपट जा अपनी चाहत से यू बंदिशों में अपने अरमान जाया न कर कितनी राते यू काट चुकी कितनी राते और गवाएगी न् जाने कब तेरी पलके सोई थी थकी हारी इन पलको के बीच और कितनी अश्रुधारा बहाएगी हर बार पागल मत बन ,बस कर अब हर बार यू आंसू पोछकर खुद को मनाया न कर