अज़ीयत सारी भूलकर,आज मैं अहद करता हूँ,,हवाओं का सीना चीरकर तिरंगा चाँद पर रखता हूँ. मैं नहीं वो भारत अब जो किसी का गुलाम हो जाऊं,कुव्वत सारे जहां से मैं अब टकराने की रखता हूँ. धुंध सदियों की अब छट के निकल गई,,वजाहत मेरे कदमों की अब आसमां पे रखता हूँ. गुर्बत के दौर से जो मुझे देखते हैं,,आँखों से पर्दा हटा ले करोड़ो लोगों का पेट अब में भरता हूँ. लड़े चाहे कितना भी,धर्म मुझमें चाहे अनेक हैं,एक डोर के हैं मोती सब,सबको एक साथ रखता हूँ. #Bechain_man