#OpenPoetry तुम आये ही थे हवा की मानिंद न कोई चेहरा न कोई आवाज बस एक हर्फ लफ्ज बनकर उतरे । रह गये जिजीविषा बनकर दिल के किसी कोने में। कभी खुद से पुछना! क्युं थी हर्फ में इश्क़ की खुशबू जो रुह में उतर गयी । कितने हर्फ लफ्ज बन कोरे पन्नों पर लिपटे हैं। जब जब पढा़ मैने टूटी हैं मर्यादा ! दिल में उठी है दीदार की अभिलाषा ! तुम न सही तस्वीर ही सही लिख दुंगा मैं। अपने प्रेम की परिभाषा।। संजय श्रीवास्तव