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#OpenPoetry तुम आये ही थे हवा की मानिंद न कोई चे

#OpenPoetry तुम आये ही थे 
हवा की मानिंद 
न कोई चेहरा
न कोई आवाज 
बस एक हर्फ 
लफ्ज बनकर उतरे ।
रह गये जिजीविषा बनकर 
दिल के किसी कोने में। 
कभी खुद से पुछना! 
क्युं थी हर्फ में 
इश्क़ की खुशबू जो 
रुह में उतर गयी ।
कितने हर्फ लफ्ज बन
कोरे पन्नों पर लिपटे हैं। 
जब जब पढा़ मैने 
टूटी हैं मर्यादा !
दिल में उठी है 
दीदार की अभिलाषा !
तुम न सही तस्वीर ही सही 
लिख दुंगा मैं। 
अपने प्रेम की परिभाषा।।  
संजय श्रीवास्तव
#OpenPoetry तुम आये ही थे 
हवा की मानिंद 
न कोई चेहरा
न कोई आवाज 
बस एक हर्फ 
लफ्ज बनकर उतरे ।
रह गये जिजीविषा बनकर 
दिल के किसी कोने में। 
कभी खुद से पुछना! 
क्युं थी हर्फ में 
इश्क़ की खुशबू जो 
रुह में उतर गयी ।
कितने हर्फ लफ्ज बन
कोरे पन्नों पर लिपटे हैं। 
जब जब पढा़ मैने 
टूटी हैं मर्यादा !
दिल में उठी है 
दीदार की अभिलाषा !
तुम न सही तस्वीर ही सही 
लिख दुंगा मैं। 
अपने प्रेम की परिभाषा।।  
संजय श्रीवास्तव