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उस बंजर सी जमी पर फिर से अब कुछ उगा रही थी मैं, दि

उस बंजर सी जमी पर फिर से अब कुछ उगा रही थी मैं,
दिल की टूटे से टुकड़ों को फिर मिला रही थी मैं,
खोई हुई सी कुछ पहचान फिर जुटा रही थी मैं,
अपने हिस्से के सारे गमो को दुनिया से छुपा रही थी मैं,
अब कुछ उसको भुला रही थी मैं पर शायद उसी के साथ और भी कुछ वक़्त बिता रही थी मैं,
वक़्त के साथ बदलने का हुनर अब खुद को सीखा रही थी मैं,
कुछ कहानियों को खुद ही अब जुठला रही थी मैं
तेरे साथ ना सही ज़िन्दगी अब दो कदम आगे चलना सीखना रही खुद को,
देख मैं उन अनजानी सी रहो में भी अपना रास्ता बना तुझ तक पहुंच रही........
अब तो उसको भी छोड़ कर तुझे अपना रही हूं.........
आए मंज़िल अब तुझे अपना साथी बना रही हूं मैं ।। #मैं
उस बंजर सी जमी पर फिर से अब कुछ उगा रही थी मैं,
दिल की टूटे से टुकड़ों को फिर मिला रही थी मैं,
खोई हुई सी कुछ पहचान फिर जुटा रही थी मैं,
अपने हिस्से के सारे गमो को दुनिया से छुपा रही थी मैं,
अब कुछ उसको भुला रही थी मैं पर शायद उसी के साथ और भी कुछ वक़्त बिता रही थी मैं,
वक़्त के साथ बदलने का हुनर अब खुद को सीखा रही थी मैं,
कुछ कहानियों को खुद ही अब जुठला रही थी मैं
तेरे साथ ना सही ज़िन्दगी अब दो कदम आगे चलना सीखना रही खुद को,
देख मैं उन अनजानी सी रहो में भी अपना रास्ता बना तुझ तक पहुंच रही........
अब तो उसको भी छोड़ कर तुझे अपना रही हूं.........
आए मंज़िल अब तुझे अपना साथी बना रही हूं मैं ।। #मैं