"बाढ़ में फंसा सुकुमार कवि" बाढ़ के पानी से यारों, व्योम सा फैली हुई है, इस दफा कैसे मैं तैरु, कह रहा अनुभव हमारा, की बहुत गहरी हुई है। डर रहा हूं देखकर रूप, मैं इनका भयानक, ढूंढ कर मैं थक गया हूं, तट मिला मुझको ना अब तक, शांत थी अब तक जो लहरें, शांत थी अब तक जो लहरें, नॉव तेरा तट नहीं सब हो, गए हैं आज गहरे, पुष्प थी पर आज काँटाे, सा मगर पैनी हुई है, कह रहा अनुभव हमारा, की बहुत गहरी हुई हैं।। sadness of poet describe here please read whole poem and like commente also..... My_Words✍✍ Pramod Kumar