बचपन और बारिश कविता देखो चमकी दामिनी चम -चम परिंदों के पंख भी चमके चमकीले पवन ले आयी झोंका आंधी का झूम रहे सरसों के फूल पीले धीमे धीमे गिरीं जो बूंदें मन बर्षा संग लहराया देखो हरियाली का नजारा बच्चों के मन को भाया बाग बगीचे पवन संग देखो कैसे झूम रहे हैं एक गुट बनाकर बच्चे देखो कैसे बर्षा मे भीग रहे हैं बच्चों अपने वस्त्र तो देखो हो गये सारे गीले सारे गलियारों मे बस्ती के बर्षा का पानी भरा हुआ है बच्चे छम छम करते दौड़ रहे हैं कागज की नाव बनाकर देखो पानी में छोड़ रहे हैं बच्चों के ये दिन भी हैं,कितने रंगीले मारुफ आलम बचपन और बारिश/कविता