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तू सुलगती आग जैसी, मैं सेहमी खाख बन जाऊं। तू नग़मा

तू सुलगती आग जैसी, मैं सेहमी खाख बन जाऊं।
तू नग़मा कोई शायर का, मैं उसकी साज़ बन जाऊं।।
तू सुलगती आग जैसी, मैं सेहमी खाख बन जाऊं।
तू नग़मा कोई शायर का, मैं उसकी साज़ बन जाऊं।।