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कैसे न आऊं आगोश में, तेरे चेहरे का चाँद जो फैलाता

कैसे न आऊं आगोश में, तेरे चेहरे का चाँद जो फैलाता है बांहों को !
अब कैसे जाऊं कहीं कि तेरे बदन की हर एक रुकावट रोके है मेरी राहों को !! मेरी शायरी आपके लिए 🙏
कैसे न आऊं आगोश में, तेरे चेहरे का चाँद जो फैलाता है बांहों को !
अब कैसे जाऊं कहीं कि तेरे बदन की हर एक रुकावट रोके है मेरी राहों को !! मेरी शायरी आपके लिए 🙏
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devendra dev

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