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एक दिन एक दिन मुलाकात होंगी नभ और धरा : जैसे- नदी

एक दिन
एक दिन मुलाकात होंगी
नभ और धरा : जैसे-

नदी की कल-कल ध्वनि से
बुनता हो मधुर संगीत,
चिड़ियों का 
सरसों सा खिलता गीत,

दरख़्त की शाखाओं से
लिपटा हुआ आत्मविश्वास,
दीपक की 
उज्ज्वल ज्योति सी आस,

भावनाओं के अंकुर 
तब हौले-हौले प्रस्फुटित रहेंगे,
हृदय पुष्प मुरझाकर
फिर, इस आँगन खिलेंगे..!

©डॉ. अनुभूति
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