काश फिर से वो बहार आ जाता। सावन में बूंदों का फुहार आ जाता। हम ऐसे ही छुपा लेते तुम्हें अपनी बाहों में, अगर फिर से वो हसीन रात आ जाता। संजीव पाण्डेय