कुछ तो हम भाग्य में लिखवा के आते हैं कुछ तो लोग हमें बेबजह ही सताते हैं। अपने दुश्साहस व दुष्कर्मों पर इठलाते हैं,इतराते हैं, मुँह उठाये रौब दिखाते हैं, जिम्मेदारियों का जिन्हें भान नहीं, रिश्तों का मान नहीं। कुछ भी बने वो अपनी नजर में पर ऐसे लोग मन से उतर जाते हैं। पारुल शर्मा कुछ तो हम भाग्य में लिखवा के आते है कुछ तो लोग हमें बेबजह ही सताते है। अपने दुश्साहस व दुश्कर्मो पर इठलाते है,इतराते है, मुँह उठाये रौब दिखाते है, जिम्मेदारियों का जिन्हें भान नहीं, रिश्तों का मान नही। कुछ बने वो अपनी नजर में