छरहरी काया मेरी जाने कहाँ छूट गई छाने लगा मुझ पे मोटापा मेरे राम जी मारवाड़ी सेठ जैसा, पेट मेरा फूल गया कल को पड़े न कहीं छापा मेरे राम जी रसभरे बैन कहाँ, घर में भी चैन कहाँ खो न बैठूँ किसी दिन आपा मेरे राम जी ©suryachoudhery