चला हु में मोत बन दुश्मनो की छाती चिरने ने चला हु डर नहीं ह मोत का में वीर धरती में पला हु रागों रागों में हम वतन से में भरा भरा हु अंगारो पे चलने को में सोला बन खड़ा हूँ सत्रुओं की धड़कनों को थाम कर उने चीरने में चला हु अभिमान उन का आज में तोड़ने चला हु धड़ सत्रुओं का काट कर संसार जीत ने चला हु ये देश है माँ भारती का सारे जग को ये बोलने चला हु