दुआ हमारी उसने जो चाहा मिल गया, खुशिया सारी नसीब हुई मानो या ना मानो ज़माना, दुआ हमारी ही कबूल हुई वो एक शाम थी जब, आख़िरी बार तुमसे नज़र हुई उस शाम के बाद हमारी, ना अभी तक कोई सहर हुई कभी रहते थे हम तुम्हारे, ख़यालो का नूर बनकर वो ख़याल कहाँ खो गये इसकी, किसिको खबर तक नही हुई