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की ये मजदूरी है या मजबूरी ।। सुना था शहर में अच्

की ये  मजदूरी है या मजबूरी ।।

सुना था शहर में अच्छी होती है कमाई।
t तो हम भी चलें क्यूंकि  सवाल था पापी पेट की भरपाई।
जैसे  तैसे मुश्किलों से करके गाड़ी पटरी पर आई।
तभी चारों तरफ से एक शब्द लॉकडाउन दिया सुनाई।

कुछ सोचते ,कुछ समझते इससे पहले ही सारे दरवाजे बंद दिये दिखाई।
लेकिन एक बार फिर जिंदगी उसी मोड़ पर लाई।
आखिर वही सवाल था पापी पेट की भरपाई।
तो निकल चले फिर उसी मंजिल पर जो हमको यहां तक थी पहुंचाई।
सुनसान सड़कों से ,मिल पत्थरों से और अब भूख प्यास से अपनी है लड़ाई।
कुछ तो चलते चले ,
 कुछ दबते चले किसी को मौत ने खुद अपने  गले लगाई।
मन अंदर ही अंदर है पूछता,
एक बात ज़रा बतला दो 
 हो कुदरत का कहर या कोई तानाशाही
क्यों हर बार हम पर ही आई।
अगर फिर भी सांसे चल रही है,
तो जान  लो है मिलो की दूरी

कि ये मजदूरी है या मजबूरी।।

Nandani yadav.... # pravasi
#lockdown
Nandani yadav
की ये  मजदूरी है या मजबूरी ।।

सुना था शहर में अच्छी होती है कमाई।
t तो हम भी चलें क्यूंकि  सवाल था पापी पेट की भरपाई।
जैसे  तैसे मुश्किलों से करके गाड़ी पटरी पर आई।
तभी चारों तरफ से एक शब्द लॉकडाउन दिया सुनाई।

कुछ सोचते ,कुछ समझते इससे पहले ही सारे दरवाजे बंद दिये दिखाई।
लेकिन एक बार फिर जिंदगी उसी मोड़ पर लाई।
आखिर वही सवाल था पापी पेट की भरपाई।
तो निकल चले फिर उसी मंजिल पर जो हमको यहां तक थी पहुंचाई।
सुनसान सड़कों से ,मिल पत्थरों से और अब भूख प्यास से अपनी है लड़ाई।
कुछ तो चलते चले ,
 कुछ दबते चले किसी को मौत ने खुद अपने  गले लगाई।
मन अंदर ही अंदर है पूछता,
एक बात ज़रा बतला दो 
 हो कुदरत का कहर या कोई तानाशाही
क्यों हर बार हम पर ही आई।
अगर फिर भी सांसे चल रही है,
तो जान  लो है मिलो की दूरी

कि ये मजदूरी है या मजबूरी।।

Nandani yadav.... # pravasi
#lockdown
Nandani yadav