क़ातिल यूँ तो फ़ुरसत कहाँ हैं किसी को अपनों से भी हालात ए अज़ाब पूछने को, ए बेख़बर मगर इब्तिसाम का कत्ल करने के लिए जुबां पे खंजर लेके क़ातिल बना बैठा है हर कोई। #24