जानेमन,क़माल लगती हो! जब तुम अज़ीब सी हो जाती हो...... दीवारों से उचककर देखती हो बंद दरवाज़ों से झांकती हो खिड़कियों की चटखनी हटाती हो बेसुआदी के चटखारे लेती हुई ज़िंदगी लिखती हो जानेमन,क़माल लगती हो! जब तुम अज़ीब सी हो जाती हो hashtag unknown