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वो लड़ती है समय से,और उसकी हार होती है । हमारे गांव

वो लड़ती है समय से,और उसकी हार होती है ।
हमारे गांव में, मिट्टी की एक दीवार रोती है ।।

बूढ़े माँ-बाप को मंदिर में ,जाकर छोड़ देते हैं ।
बड़े खुदगर्ज है,खुदगर्जियाँ हर बार होती है ।।

अमीरों को निवाले चंद सिक्कों से नही मिलते ।
हमारे खूं-पसीने से फसल तैयार होती है ।।

मेरी मेहनत में माँ, अपनी दुवाएँ घोल देती है ।
तभी तूफ़ान से कश्ती हमारी पार होती है ।।

सुल्तान मोहित बाजपेयी.. .....................



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वो लड़ती है समय से,और उसकी हार होती है ।
हमारे गांव में, मिट्टी की एक दीवार रोती है ।।

बूढ़े माँ-बाप को मंदिर में ,जाकर छोड़ देते हैं ।
बड़े खुदगर्ज है,खुदगर्जियाँ हर बार होती है ।।

अमीरों को निवाले चंद सिक्कों से नही मिलते ।
हमारे खूं-पसीने से फसल तैयार होती है ।।

मेरी मेहनत में माँ, अपनी दुवाएँ घोल देती है ।
तभी तूफ़ान से कश्ती हमारी पार होती है ।।

सुल्तान मोहित बाजपेयी.. .....................



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