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उजले चाँद से चेहरे पर काली जुल्फों का पहरा है। उस

उजले चाँद से चेहरे पर
काली जुल्फों का पहरा है। 
उसके इश्क़ मे रँगा हूँ मैं 
ये रंग बहुत ही गहरा है।। 

मैं मंदिर मस्जिद जाता नहीं 
चारों धाम ही उसका चेहरा है।
जन्नत की अब चाहत है किसे 
जब उसका दर ही मेरा बसेरा है।। 

मै बंजर जमी सा ठहरा हूँ 
वो बारिश के पानी सी बहती है। 
मैं उसके इश्क़ मे तड़पता हूँ
वो अनजान सी रहती है।। #मैं_और_वो
उजले चाँद से चेहरे पर
काली जुल्फों का पहरा है। 
उसके इश्क़ मे रँगा हूँ मैं 
ये रंग बहुत ही गहरा है।। 

मैं मंदिर मस्जिद जाता नहीं 
चारों धाम ही उसका चेहरा है।
जन्नत की अब चाहत है किसे 
जब उसका दर ही मेरा बसेरा है।। 

मै बंजर जमी सा ठहरा हूँ 
वो बारिश के पानी सी बहती है। 
मैं उसके इश्क़ मे तड़पता हूँ
वो अनजान सी रहती है।। #मैं_और_वो