अंतरमन की चिर व्यथा, जब मुखमंडल तक आया था मेरा आभा गौण कहीं था,और विस्थापन ही छाया था तब उस अन्तःरुदन में माँ तुम फिर से ढाँढस बन आयी थी मेरे मन के अमावस में, कोई दीप प्रज्वलित करने धायी थी भास्कर माँ #diwali #me #maa #माँ