तेरी और मेरी मोहब्बतों के किस्से, कम ना थे, उन गलियों में.... जहाँ मिलते थे चोरी-चोरी। अनकही सी वो बातें, और वो सुनहरा सा ख्वाब, जो अधूरा सा रह गया..... जीने मरने की सारी क़समें, खायीं थी जो दोनों ने। टूट गयीं इस कदर से, जिसका एहसास भी ना था। जाने कितने वादे टूट गये, एक वादा और भी था, जो अधूरा सा रह गया..... मेरी तन्हाई फीकी सी है, तेरी यादों के सामने। दिल मेरा नाजुक सा है, तेरे पत्थर दिल के आगे। अपनी ज़िन्दगी के किस्से क्या कहूँ, तेरी तरह एक किस्सा भी, जो अधूरा सा रह गया..... neetu शharmA_POet✒