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मानव ही मानव को लगे है खाने, पता नही मानवता लग रही

मानव ही मानव को लगे है खाने,
पता नही मानवता लग रही है किस ठिकाने,
गुजरते मौसम की तरह अपने हो रहे है बेगाने,
मानवता को तार-तार कर रखे जा रहे है सिरहाने। 

  सबकी पड़ी है बस अपनी फिक्र,नही है रिश्तो का मोल,
बात- बात पर  रिश्ते को दिया जा रहा झुठमुठ को तोल,
कोई  ठीक नही  कब बिगड़  जाये लोगो के बोल,
बात पच नही रही कोई कब खोल दे किसी की पोल।

अपने फायदे के लिए अपनो से भी लगा रहे है बड़ा से बड़ा दाव,
इसीलिए तो मानवता का गिरता जा रहा है निरन्तर भाव,
नही रहा अब पहले जैसा लोगो मे एक दूसरे के प्रति चाव,
  अब तो अपने जहर भरे कण्ठ से लोग दे रहे है बहुत बड़ा घाव।

            ~आशुतोष यादव Diwan G  himanshi Singh अरुणशुक्ल अर्जुन   शिल्पा यादव Sudha Tripathi Ashish Garg ✍️अजनबी✍️ Shikha Sharma Pranshi Singh
मानव ही मानव को लगे है खाने,
पता नही मानवता लग रही है किस ठिकाने,
गुजरते मौसम की तरह अपने हो रहे है बेगाने,
मानवता को तार-तार कर रखे जा रहे है सिरहाने। 

  सबकी पड़ी है बस अपनी फिक्र,नही है रिश्तो का मोल,
बात- बात पर  रिश्ते को दिया जा रहा झुठमुठ को तोल,
कोई  ठीक नही  कब बिगड़  जाये लोगो के बोल,
बात पच नही रही कोई कब खोल दे किसी की पोल।

अपने फायदे के लिए अपनो से भी लगा रहे है बड़ा से बड़ा दाव,
इसीलिए तो मानवता का गिरता जा रहा है निरन्तर भाव,
नही रहा अब पहले जैसा लोगो मे एक दूसरे के प्रति चाव,
  अब तो अपने जहर भरे कण्ठ से लोग दे रहे है बहुत बड़ा घाव।

            ~आशुतोष यादव Diwan G  himanshi Singh अरुणशुक्ल अर्जुन   शिल्पा यादव Sudha Tripathi Ashish Garg ✍️अजनबी✍️ Shikha Sharma Pranshi Singh

Diwan G himanshi Singh अरुणशुक्ल अर्जुन शिल्पा यादव Sudha Tripathi Ashish Garg @✍️अजनबी✍️ @Shikha Sharma @Pranshi Singh