छोड़कर अपनो की दुनिया मैं फ़र्ज़-ए-वतन निभाने चला। तन्हा कर यह भरी महफ़िल मैं जन्नत के ठिकाने चला।। एक खरोच भी वतन के साख पर ना कभी कोई आये। जान हथेली पर रख अपनी मैं तिरंगे को जिताने चला।।