ऐ दिन मत कर गुमान अपने आप पर भूल मत तू कभी मेरा भी था । रुत बदल गयी , आज अंधेरा है.. कभी दिन था मेरा , सवेरा भी था । कभी हम भी साथ थे , लड़ाई के बाद भी हम दिन ओर रात थे । जो शाम हुआ करती थी कभी मेरे नाम की.. आज सुबह है वो किसी और के नाम की । क्या उसे भी वो दिन याद आते है ? क्या वो पल उसकी भी आँखे भिगाते है ? क्या वो भी तड़पती है पल पल बात करने को ? या दिन उसके किसी और के दीदार में गुजर जाते है । मेरा ये सोचना शायद प्यार का मज़ाक उड़ाता है क्या उसके मन मे भी एक होने का खयाल आता है ? योगेश खातोदिया क्या उसे भी याद है वो दिन ? : योगेश खातोदिया