"ऊपर वाला भी क्या करामात किए बैठा है,वहाँ ख़ुद मेरी कहानी लिखता है यहाँ क़लम मुझे दिए बैठा है.
ख़ुद तो लिखता है खुश हो हो के,यहाँ दर्द मुझे हज़ार दिए बैठा है.
ख़ुद तो लगाता है मेरी सांसों पे दाम,यहाँ फिक्र मुझे मौत की बेवज़ह दिए बैठा है.
हिजर की यादों में तड़पता हूं मैं,वो खुद मेरा निक़ाह बेवफ़ा से किये बैठा है.
लोग तो ढूंढते हैं उसे दर दर जा के,वो तो ख़ुद अमन की किताब पे क़लम लिए बैठा है।"